Jab mai tha tab hari nahi, ab hari hai to mai nahi | True Side - Krishna Bhakti | Kabir daas dohe | जब मैं था तब हरि नही, अब हरि है तो मैं नहीं । Kabir |
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है तो मैं नहीं।प्रेम गली अति संकरी जामें दो न समाही ।।
भावार्थ :
इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि अहंकार और हरि, दोनों एक साथ नहीं रह सकते। अहंकार मन में से प्रभु प्रेम को मिटा देता है, ओर प्रभु की सच्ची भक्ति मन के सारे दुर्भाव जिनमें से प्रथम है अहंकार को मिटा देती है।
इस दोहे को समझने के लिए एक उदाहरण श्रीमद भागवत पुराण में से लिया जा सकता है। जब श्री कृष्ण गोपियों के साथ अपनी दिव्य रासलीला रचाते हैं, तब गोपियों के मन में अहंकार की भावना आ जाती है। वे सोचती हैं कि स्वयं त्रिलोकस्वमी, सर्वेश्वर श्री कृष्ण उनके साथ नाच रहे हैं, तो तीनों लोकों में उनसे महान और दिव्य भला कौन? हालांकि श्री कृष्ण के समीप होने के कारण उनके मन की यह भावना अधिक प्रबल नहीं थी। गोपियाँ श्री कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त हैं, भगवान अपने परम भक्तों में ऐसी दुर्भावना नहीं आने दे सकते। इसलिए वे उनका अहंकार मिटाने की लिए उन सभी गोपियों को अकेला छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। कृष्ण बिन गोपियों की दशा प्राणहीन शरीर जैसी हो गयी। भगवान श्री कृष्ण गोपियों के पास तब तक नही लौटे जब तक उनका अहंकार सम्पूरतः समाप्त नही हो गया।
कहने का अर्थ ये है कि भगवान को अहंकार बिल्कुल भी प्रिय नही है, और दूसरी ओर से देखा जाए तो अहंकार हमें हरि चरण से दूर ले जाता है। भक्ति प्रेम का सबसे शुद्ध स्वरूप है। प्रभु प्रेम और 'अहम' भावना एक नाव में सवार नहीं हो सकते।
इसलिए हरि चरण की प्राप्ति के लिए, जल्द से जल्द अपने घमंड का त्याग कीजिये। यह उतना सरल नहीं है, लेकिन भगवान के नाम जप से यह विधि सरल बन जाती है। श्री कृष्ण से प्रार्थना कीजिये कि वे आपका अहंकार दूर करने में आपकी सहायता करें। जब कोई उन्हें सच्चे मन से पुकारता है, तो वे अपने भक्त की सहायता अवश्य करते हैं। और यदि आप पहले से ही अहंकार मुक्त हैं, तो उनसे प्रार्थना कीजिये कि भविष्य में माया के कारण आपके मन में कभी अहंकार न जाग पाए।
जय श्री कृष्ण 🙏🌺
राधे राधे 🌺🙏
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