Jab mai tha tab hari nahi, ab hari hai to mai nahi | True Side - Krishna Bhakti | Kabir daas dohe | जब मैं था तब हरि नही, अब हरि है तो मैं नहीं । Kabir |
कबीर दास जी उनके भक्तिमय दोहों के लिए जाने जाते हैं। उन्हीं दोहों में से एक प्रसिद्ध दोहा है, जो मेरे हृदय के बहुत निकट है, जिसे आज आप इस ब्लॉग के ज़रिए पढ़ने जा रहे हैं। इस दोहे में हरी का अर्थ ईश्वर से है, भले ही उस ईश्वर को विष्णु कहो, शिव कहो, दुर्गा कहो, गणेश कहो, या परब्रह्म कहो। मेरे ईष्ट देव श्री कृष्ण हैं, तो आपको इस ब्लॉग के भावार्थ में श्री हरि विष्णु का उल्लेख मिलेगा। जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है तो मैं नहीं। प्रेम गली अति संकरी जामें दो न समाही ।। भावार्थ : इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि अहंकार और हरि, दोनों एक साथ नहीं रह सकते। अहंकार मन में से प्रभु प्रेम को मिटा देता है, ओर प्रभु की सच्ची भक्ति मन के सारे दुर्भाव जिनमें से प्रथम है अहंकार को मिटा देती है। इस दोहे को समझने के लिए एक उदाहरण श्रीमद भागवत पुराण में से लिया जा सकता है। जब श्री कृष्ण गोपियों के साथ अपनी दिव्य रासलीला रचाते हैं, तब गोपियों के मन में अहंकार की भावना आ जाती है। वे सोचती हैं कि स्वयं त्रिलोकस्वमी, सर्वेश्वर श्री कृष्ण उनके साथ नाच रहे हैं, तो तीनों लोकों में उनसे महान और दिव्य भल...