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मेरा घर || My Home || Mera Ghar || Vrindavan poetry || Shri Radha Krishna poem

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आज घर जाने की इच्छा उठी है।  उन बिछड़े हुए अपनों को जानने की जिज्ञासा उठी है।  जब हर रस्ते से, हर इंसान से थक कर घर को जाती हूँ तो बड़ा अपना सा लगता है, तो जब बरसों बाद इतने शरीर  भ्रमण , माया फसादों में फसने  के बाद घर को जाउंगी तो कितना अधिक अपना सा आनंद आएगा। और तो और मेरे घर वाले इतने अधिक करुणामयी, की मुझ अकेली को ही नहीं अपितु मेरे नश्वर शरीर की १४ पीढ़ियों को भी मेरे साथ बुलाएंगे। शोर शराबे से दूर घर वह मेरा , जहां हर छोटी से छोटी ध्वनि एक मधुर संगीत सी लगती है, जहां का खाना अमृत से भी मीठा होता है , जहां की हवा हर झोंके के साथ मुझे सदा के लिए वहां का बना देती है और जहां का पानी मुझे हर क्षण मेरे अपनों से मिला देता है।  वहां के प्रेम की तो क्या ही बात करूँ, मेरे घर का कण कण , क्षण क्षण मुझे मेरे राधाकृष्ण से मिला देता है।  जहां हर जगह श्री कृष्ण की के वैजन्ती   की सुगनध है , जहां मिटटी नहीं अपितु श्री राधागोविन्द की चरणचूल है , जहां फूल नहीं अपितु उस रूप में श्रीजी से मिलने की उमंग है , जहां वायु नहीं बल्कि श्री रा...